Breaking News in Hindi

फिर से चर्चा में आयी महिला न्यायमूर्ति नागरत्ना

नोटबंदी सही था या गलत, इस पर कानूनी बहस अब समाप्त हो चुकी है क्योंकि इस पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है। इसके बाद भी इस एक फैसले ने उस न्यायिक बहस को जन्म दिया है, जिसकी गूंज आने वाले दिनों में भी सुनाई पड़ती रहेगी। संविधान पीठ ने यह फैसला चार-एक के बहुमत से सुनाया है।

जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम ने कहा है कि नोटबंदी की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं है। सिर्फ जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बहुमत से अलग राय देते हुए नोटबंदी के फैसले को गैरकानूनी करार दिया है। चिदंबरम ने कहा, हम खुश हैं कि अल्पमत के फैसले ने नोटबंदी की अमियमितताओं और अवैधता की ओर इंगित किया है।

देश के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, एडीएम जबलपुर को याद करें जिन्होंने सरकार की आपातकालीन शक्तियों को बरकरार रखा था। जस्टिस खन्ना द्वारा एक असहमतिपूर्ण निर्णय दिया गया था जो अंततः आज सुप्रीम कोर्ट का बहुमत बन गया। इसी तरह अपने पिता के फैसले को ही जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने पलट दिया था।

चिदंबरम ने कहा इस असहमति से साफ है कि नोटबंदी के लिए निर्धारित उद्देश्यों को हासिल किया जा सका है। उन्होंने कहा, आप एक प्रक्रिया का पालन करते हैं, लेकिन लक्ष्य हासिल नहीं करते, लोगों को इतनी कठिनाई में क्यों डालते हैं। हम कानून के आगे झुक जाते हैं। अल्पमत के फैसले ने स्पष्ट किया है कि कोई परामर्श नहीं था।

यह केंद्र सरकार का एकतरफा फैसला था। इसलिए अब देश का ध्यान सुप्रीम कोर्ट की उस महिला न्यायमूर्ति की तरफ खींच गया है जो पहले भी कई बार सरकार के खिलाफ आदेश पारित कर चुकी हैं। जस्टिस नागरत्ना के पिता ईएस वेंकटरमैया सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं। 1989 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया आरएस पाठक के रिटायर होने के बाद ईएस वेंकटरमैया 1989 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बने।

पिता ने ही नागरत्ना को वकालत के करियर में आने का सुझाव दिया था। इसके बाद नागरत्ना ने एलएलबी की पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी से की थी। कानून के कई जानकारों का कहना है कि चार साल बाद जस्टिस नागरत्ना भारत की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश बन सकती हैं। जस्टिस नागरत्ना 2008 में कर्नाटक हाईकोर्ट में बतौर एडिशनल जज आई थीं। 2009 जस्टिस नागरत्ना के करियर के सबसे कठिन सालों में से एक था।

दरअसल, कर्नाटक हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन पद के दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और जमीन अधिग्रहण जैसे गंभीर आरोपों में घिर गए थे। जस्टिस दिनाकरन का विरोध करने के लिए वकीलों ने राज्यभर की अदालतों में सभी प्रोसीडिंग्स का विरोध किया। नाराज वकीलों ने जस्टिस दिनाकरन, जस्टिस नागरत्ना के साथ एक और जस्टिस को कमरे में बंद कर दिया।  18 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने खाली पदों के लिए 9 जजों के नाम रेकमेंड किए।

इनमें एक नाम जस्टिस बीवी नागरत्ना का भी था। 2018 में जस्टिस नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने श्री मूकाम्बिका मंदिर बनाम श्री रविराजा शेट्‌टी के केस की सुनवाई करते हुए अधिनियम 1972 का हवाला देकर कहा कि मंदिर बिजनेस की जगह नहीं हैं, इसलिए इसके कर्मचारी ग्रेच्युटी भुगतान के अधिकारी नहीं माने जा सकते हैं।

30 मई 2020 को कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस नागरत्ना ने एक फैसला सुनाया। अपने फैसले में जजों ने लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों की खराब हालत को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई। जजों ने 6 लाख से ज्यादा मजदूरों के लिए रहने, खाने और इन मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने की उचित व्यवस्था करने का आदेश दिया था।

साल 2021 में जस्टिस नागरत्ना की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन के एक सर्कुलर के खिलाफ अहम फैसला सुनाया था। दरअसल, सर्कुलर में कहा गया था कि एक कर्मचारी की दूसरी पत्नी या उसके बच्चे अनुकंपा नियुक्ति के पात्र नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘इस दुनिया में कोई बच्चा बिना मां-बाप के पैदा नहीं होता।

बच्चे के पैदा होने में खुद उसका कोई योगदान नहीं होता। इसलिए कानून को इस तथ्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि नाजायज मां-बाप हो सकते हैं, लेकिन नाजायज बच्चे नहीं। ये पहली दफा नहीं है जब जस्टिस नागरत्ना ने केंद्र के किसी फैसले को गलत ठहराया है। इससे पहले भी उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने 2017 में ‘द टोबैको इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ बनाम ‘यूनियन ऑफ इंडिया’ के केस पर फैसला सुनाते हुए केंद्र के उस फैसले को रद्द कर दिया था,

जिसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने तंबाकू उत्पाद की 85% पैकेजिंग को सचित्र स्वास्थ्य चेतावनी के साथ कवर करना अनिवार्य किया था। इस नियम को गैर-संवैधानिक बताते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र के इस फैसले को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पास नियमों में इस तरह के संशोधन करने के अधिकार नहीं हैं।

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.