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तेरह साल की बच्ची के शरीर से कैंसर पूरी तरह खत्म हुआ

  • ल्यूकोमिया की जानलेवी बीमारी थी उसे

  • कई चरणों में हुआ जेनेटिक एडिटिंग का काम

  • लाईलाज बीमारी का स्थायी ईलाज होने से खुशी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः एलिसा नाम की बच्ची अब क्रिसमस का त्योहार अपने घरवालों के साथ धूमधाम से मनाने की तैयारी कर रही है। उसके घरवाले भी बहुत खुश है। सभी की खुशी की असली वजह एक जानलेवा बीमारी से इस बच्ची का बच जाना है। वह सिर्फ बची ही नहीं है बल्कि उसके शरीर से कैंसर की बीमारी स्थायी तौर पर दूर कर ली गयी है। इस तरह ल्यूकोमिया का ऐसा ईलाज पहली बार हुआ है।

इसके सफल होने के बाद शोधकर्ता इस शोध को और उन्नत बनाने की दिशा में काम प्रारंभ कर चुके हैं। अनुमान किया जा रहा है कि इस विधि को और उन्नत कर हर किस्म के कैंसर का स्थायी ईलाज अब कर पाना संभव होगा। 13 साल की इस बच्ची को अस्पताल के छोड़ दिये जाने के बाद भी उसे नियमित अस्पताल बुलाया जाता है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि यह पता चल सके कि कैंसर कोशिकाएं फिर से विकसित तो नहीं होने लगी हैं।

वैसे उसके शरीर से कैंसर पूरी तरह खत्म हुए छह माह बीत चुके हैं लेकिन डाक्टरों ने एहतियात के तौर पर उसे संभलकर रखने की हिदायत उसके घरवालों को दे रखी है। लंदन के ग्रेट ओरमंड स्ट्रीट अस्पताल की इस सफलता से दुनिया भर के जेनेटिक वैज्ञानिक उत्साहित हैं। इस बारे में शोधकर्ताओँ का वैश्विक संगठन आपस में आंकड़ों और उपलब्धियों का आदान प्रदान कर रहा है।

इस बारे में इस अस्पताल तथा लंदन ग्रोबल यूनिवर्सिटी से जुड़े प्रो. वसीम कासिम ने कहा कि इस विधि को इससे पहले कभी आजमाया नहीं गया था। जानलेवा बीमारी की चपेट में आ चुकी इस बच्ची की मां को जब पूरी प्रक्रिया समझायी गयी तो वह निरूत्तर हो गयीं। इसके बाद एलिसा यानी उस बच्ची को पूरी जानकारी दी गयी और बताया गया कि इस परीक्षण के लिए वह पहली मरीज होगी। मां ने अपने घरवालों से विचार के बाद सहमति दी क्योंकि उन्हें यह दिख रहा था कि दवाइयों का असर खत्म हो रहा है और उनकी बच्ची धीरे धीरे मौत के मुंह में जाने लगी है।

अस्पताल के चिकित्सकों ने यह देख लिया था कि प्रचलित विधि से उसकी कैंसर कोशिकाओं को रोकने के लिए उसकी क्षमता नहीं है। छह वर्ष पूर्व विकसित बेस एडिटिंग तकनीक को इसके लिए आजमाया गया। यह बताया गया है कि शरीर में जीवन चार मुद्दों पर टिका होता है। वे हैं एडेनाइन, क्राइटोसाइन, गुआनाइन और थाईमाइन। यह चार मिलकर ही शरीर में जेनेटिक कोड की रचना करते हैं।

इस नई तकनीक में किसी खास जेनेटिक कोड को बदला जाता है और उसके जरिए दूसरे जेनेटिक संकेतों को सुधारा जाता है। इस काम को करने के लिए डाक्टरों की एक बहुत बड़ी टीम ने काम किया। सभी ने मिलकर वह टी सेल तैयार किया जो एलिसा के शरीर में मौजूद कैंसर कोशिकाओं को खोजकर मार सके। इस टी सेल को इस तरीके से विकसित किया गया ताकि एलिसा के शरीर में जाने के बाद वह उसके शरीर के अनुकूल आचरण करे।

इसके बाद उस टी सेल के एक हिस्से, जिसे सीडी 7 कहा जाता है, उसे हटाया गया। इसके बाद तीसरी जेनेटिक एडिटिंग उन कोषों पर पहले से चल रही दवाइयों का असर रोकने के लिए की गयी। अंतिम चरण में शरीर में डाले गये टी सेल को अपना काम करने का निर्देश जेनेटिक तौर पर जारी किया गया। यह सारा काम पूरा होने के बाद लगातार छह महीने तक इस बच्ची की निगरानी की गयी और धीरे धीरे उसके शरीर से कैंसर का प्रभाव घटते हुए खत्म होता हुआ पाया गया।

अब हालत को जानने वाली एलिसा ने अब बताया कि वह मान चुकी थी कि उसकी मौत निश्चित है। पिछले साल के क्रिसमस के दौरान उसे लग रहा था कि घरवालों के साथ यह उसका अंतिम क्रिसमस है। पिछले जनवरी में उनके जन्मदिन पर उसकी मां किओना सिर्फ रोती रही। अब सारे घरवाले क्रिसमस के करीब आने के बीच इस अच्छी खबर से और अधिक खुश हैं। यानी इस विधि के सफल होने के बाद यह माना गया है कि जिस बीमारी को चंद वर्ष पहले लाइलाज माना गया था, उस पर भी जीत हासिल की जा सकती है।

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