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नोटबंदी मामले में शीर्ष अदालत ने कहा यह शर्म की बात है

  • विवेक नारायण शर्मा ने दाखिल की याचिका

  • सरकार को पिछले माह उत्तर देने को कहा

  • चिदांवरम ने कहा यह पूरे देश से जुड़ा मामला

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः केंद्र सरकार नोटबंदी के औचित्य और उसके फायदे को स्पष्ट नहीं कर पा रही है। इसी वजह से केंद्र सरकार के वकील ने इस मामले में अदालत से अतिरिक्त समय देने की मांग की। इस मांग को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा कि आम तौर पर ऐसे मामलों में तिथि नहीं दी जाती है। लेकिन सरकार की मांग को देखते हुए इसे मंजूर किया जाता है लेकिन यह अदालत के लिए भी शर्म की बात है।

दरअसल विवेक नारायण शर्मा वनाम केंद्र सरकार में इस नोटबंदी के फैसले को चुनौती दी गयी है। वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने पांच सौ और एक हजार रुपये के सारे नोट खारिज करते हुए यह फैसला लिया था। सुप्रीम कोर्ट की इस संविधान खंडपीठ में न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमणियम और न्यायमूर्ति बीवी नागारत्न शामिल थे। इस पीठ ने पिछले महीने ही सरकार को यह निर्देश दिया था कि वे सवालों का उत्तर देते हुए अपनी बात रखें। लेकिन कल केंद्र सरकार की तरफ से एटर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी ने एक सप्ताह का और समय मांगा। इसी पर अदालत ने पूरे मामले को अदालत के लिए भी शर्म की बात माना।

दूसरी तरफ याचिकाकर्ता के वकील श्याम दीवान ने अदालत से कहा कि भले ही केंद्र सरकार की तरफ से कोई दलील नहीं दी गयी है लेकिन उनका पक्ष आने के पहले अदालत याचिकाकर्ता की बातों को सुन ले ताकि बाद में कोर्ट का समय जाया ना हो। लेकिन अदालत ने कहा कि पहले केंद्र सरकार का उत्तर आ जाए ताकि यह समझा जा सके कि इस याचिका को सुनने का कोई औचित्य है अथवा नहीं। इस मुद्दे पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदांवरम ने कहा कि इस नोटबंदी के सारे पहलुओं पर विचार किये जाने की जरूरत है क्योंकि यह एक ऐसा फैसला है, जिससे सारा देश प्रभावित हुआ है। इसलिए यातिका पर अदालत विचार कर सकती है।

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