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अब जाकर मुल्ला उमर के समाधिस्थल का पता चला

  • अशरफ गनी ने कहा था टीबी से मौत हुई

  • सेना छावनी के काफी करीब किरायेदार थे

  • अब समाधि स्थल की तस्वीर जारी की

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः तालिबान बनाने वाले मुल्ला उमर प्रारंभ से ही रहस्यों से घिरा एक चरित्र रहा है। वर्ष 1993 में उनकी पहल पर तालिबान नामक संगठन का जन्म हुआ था। उन्होंने अपने इलाके में इस्लामी शासन की पद्धति चालू की थी, जिसमें महिलाओं को कोई अधिकार नहीं होने तथा गलती करने वालों को सार्वजनिक स्थलों पर बेंत लगाना शामिल थे। अब अफगानिस्तान पर पिछले पंद्रह अगस्त से काबिज तालिबान शासन ने उनके कब्र के बारे में औपचारिक एलान किया है।

यह बताया गया है कि अफगानिस्तान के जाबूल प्रांत के सुरी जेला में उमरजोर के पास मुल्ला उमर की समाधि बनायी गयी थी। तालिबान प्रवक्ता  जाबिहुल्लाह मुजाहिद ने बताया कि उनकी मौत के दौरान अनेक शत्रुओं से घिरे होने की वजह से इसका एलान नहीं किया गया था।

उस वक्त तालिबान को अफगानिस्तान के दूर दराज के इलाकों में चले जाना पड़ा था। अब उस तालिबानी नेता के समाधिस्थल की तस्वीर भी सार्वजनिक कर दी गयी है। सफेद रंग के चबूतरे को हरे रंग के लोहे के घेरे में रखा गया है। यह लोहा का घेरा इसलिए है ताकि कोई इस समाधि को नष्ट ना कर दे। वैसे तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि उनके परिवार के लोगों को इस समाधि की जानकारी थी लेकिन उन्हें भी गोपनीयता बरतने को कहा गया था।

तालिबान संगठन बनाने के बाद वे रूसी सेना के साथ युद्ध में जूझ रहे थे। 1987 से 1991 तक चली इस लड़ाई के दौरान ही उनकी एक आंख चली गयी थी। एक विस्फोट में उनके एक हाथ को भी नुकसान हुआ था। अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी ने इन्हीं दो पहचानों के आधार पर उनके खिलाफ एक करोड़ डॉलर ईनाम का एलान किया था। लेकिन अमेरिका को इसमें कोई सफलता नहीं मिली।

दूसरी तरफ पाकिस्तान में छिपे ओसामा बिन लादेन और काबुल में छिपे अल जवाहिरी को अमेरिकी सेना ने मार गिराया है। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने पहले कहा था कि तालिबान नेता मुल्ला मोहम्मद उमर की पाकिस्तान में मौत हुई है। उनके मुताबिक इस तालिबानी नेता को टीबी की बीमारी थी और वह करांची के एक अस्पताल में मरा था।

वैसे भी वर्ष 2001 के बाद उसका कोई चित्र या वीडियो सार्वजनिक नहीं हुआ था। वर्ष 2007 के बाद से अन्य तालिबानी नेताओं को उनसे कोई निर्देश भी नहीं मिला था। ओसामा बिन लादेन की भी उमर ने ही मदद की थी। तालिबान के शीर्ष पद होने के बाद भी वह सार्वजनिक तौर पर कम नजर आया करते थे। अब इस बात का खुलासा हुआ है कि वह जाबुल के जिस घर में किराये पर रहते थे, वहां के लोगों को भी उनकी असली पहचान की जानकारी नहीं थी।

यह घर जहां था वहां से अमेरिकी छावनी पैदल जाने की दूरी पर था। इसलिए अमेरिकी सेना को कभी पता ही नहीं चल पाया कि पैदल चलता हुआ कौन व्यक्ति उनके ठिकानों पर नजर रख रहा है। अब मौत का एलान काफी विलंब से होने के बाद यह माना जा रहा है कि अलग अलग गुटों में बंट रहे तालिबान को एकजुट रखने के लिए ही पहले उनकी मौत का एलान नहीं किय गया था।

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