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देश के नकदी के गायब होने पर बहस हो

देश में नकदी का प्रवाह कम हो गया है। यह गंभीर चिंता का विषय है। आम तौर पर सरकार यानी भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मान्यता प्राप्त करेंसी का बाजार में होना ही आर्थिक सक्रियता को दर्शाता है। अगर इसमें से नकदी कम हो तो यह माना जाना चाहिए कि बाजार की हालात ठीक नहीं है। लेकिन बदले माहौल में यह भी जांचा जाना चाहिए कि आखिर यह नकदी किन तिजोरियों में कैद हो गयी है।

देश में तेजी से राजनीतिक परिस्थितियां बदल रही हैं। इसके बीच ही लगता है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने भी खुद का दामन पाक साफ रखने की तैयारी कर ली है। मिल रही सूचनाओं के मुताबिक आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी ने केंद्र सरकार को भेजी जाने वाली रिपोर्ट पर चर्चा करने और इसे तैयार करने के लिए गुरुवार को बैठक की।

इस रिपोर्ट में बताया जाएगा कि इस वर्ष जनवरी से लगातार तीन तिमाहियों में वह खुदरा महंगाई  को छह फीसदी की संतोषजनक सीमा से नीचे रखने में क्यों विफल रही है। यह सूचना तब आयी है जबकि सरकार और उसके समर्थक लगातार आर्थिक स्थिति के बेहतर होने की दावेदारी से पीछे नहीं हट रहे हैं।

आरबीआई ने एक बयान में कहा है कि एमपीसी की तीन नवंबर 2022 को अलग से बैठक हुई जिसमें उस रिपोर्ट पर चर्चा हुई जो केंद्रीय बैंक आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 45 जेडएन, आरबीआई एमपीसी के नियम 7 और मौद्रिक नीति प्रक्रिया नियमन, 2016 के प्रावधानों के तहत सरकार को भेजेगा।

आरबीआई अधिनियम की इस धारा में प्रावधान है कि महंगाई को सरकार की तरफ से तय सीमा के भीतर रख पाने में नाकाम रहने पर केंद्रीय बैंक को इसके बारे में सरकार को रिपोर्ट देनी होती है। छह सदस्यीय मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक की अध्यक्षता रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने की। इसमें सभी सदस्य- माइकल देवव्रत पात्रा, राजीव रंजन, शशांक भिड़े, आशिमा गोयल और जयंत आर वर्मा भी शामिल हुए।

छह साल पहले मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी का गठन होने के बाद पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक लगातार नौ महीनों तक महंगाई को निर्धारित दायरे में नहीं रख पाने पर एक रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपेगा। वर्ष 2016 में मौद्रिक नीति निर्धारण के एक व्यवस्थित ढांचे के रूप में इसका गठन किया गया था। उसके बाद से एमपीसी ही नीतिगत ब्याज दरों के बारे में निर्णय लेने वाली सर्वोच्च इकाई बनी हुई है।

इस संस्था के ढांचे के तहत सरकार ने आरबीआई को यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि महंगाई चार प्रतिशत (दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ) से नीचे बनी रहे। हालांकि, इस साल जनवरी से ही महंगाई लगातार छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। सितंबर में भी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा महंगाई 7.41 प्रतिशत पर दर्ज की गई। इसका मतलब है कि लगातार नौ महीनों से महंगाई छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है।

दूसरी तरफ यह सूचना भी बाहर आ चुकी है कि हाल की दीपावली में भी बाजार में नकदी का कम प्रवाह महसूस किया है। आम तौर पर यह एक ऐसा पर्व होता है, जिसमें लोग खर्च अधिक करते हैं। अब आंकड़े बता रहे हैं कि इस साल दीवाली वाले सप्ताह में नकदी के प्रवाह में 7,600 करोड़ रुपये की कमी हुई।

20 वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है। एक रिपोर्ट में गुरुवार को यह जानकारी दी गई। सिस्टम में चल रही मुद्रा में बैंक नोट और सिक्के आते हैं।  एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों के बीच डिजिटल भुगतान के लोकप्रिय होने के कारण ऐसा हुआ। रिपोर्ट में साथ ही कहा गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय एक संरचनात्मक बदलाव के दौर से गुजर रही है।

रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 में दीवाली वाले सप्ताह में सिस्टम में नकदी में 950 करोड़ रुपये की मामूली गिरावट हुई थी, लेकिन ऐसा वैश्विक वित्तीय संकट के बीच आर्थिक मंदी के कारण हुआ था। अर्थशास्त्रियों ने कहा कि तकनीकी नवाचारों ने भारतीय भुगतान प्रणाली को बदल दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था अब नकदी आधारित नहीं है, बल्कि स्मार्टफोन आधारित भुगतान में बदल गई है। उन्होंने कहा कि प्रणाली में नकदी घटना बैंकों के लिए फायदेमंद है।

लेकिन इस स्मार्टफोन आधारित या ऑनलाइन खरीद का आंकड़ा यह साबित नहीं करता कि इसकी वजह से बाजार से नकदी यानी रिजर्व बैंक द्वारा छापे गये नोट ही गायब हो जाएं। नकदी के प्रवाह में 76 सौ करोड़ रुपये की कमी कोई छोटी मोटी बात नहीं है। इससे जुड़ा हुआ सवाल भी प्रासंगिक है कि फिर इतनी अधिक मात्रा की करेंसी किस तिजोरी में बंद है। नोटबंदी के जरिए काला धन की वापसी का दावा गलत साबित होने के बाद इन सूचनाओं को हल्के में तो कतई नहीं लिया जा सकता है।

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