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मोरबी के ब्रिज का ढहना भी भाजपा के लिए परेशानी का सबब बना

  • ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस का जमीनी प्रचार

  • आम आदमी पार्टी की गारंटियों से परेशानी

  • अपना किला ढह गया तो परेशानी बढ़ेगी

राष्ट्रीय खबर

अहमदाबादः गुजरात का चुनाव इस बार भाजपा के लिए अचानक से परेशानियों से घिर गया है। दरअसल इसकी मुख्य वजह मोरबी के पैदल पुल का अचानक गिरना है। इस हादसे और बाद के घटनाक्रमों की वजह से जनता के बीच जो नाराजगी उपजी है, उसकी आंच भाजपा साफ साफ महसूस कर पा रही है।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि नेतृत्व को लेकर भाजपा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों पर भारी है, लेकिन बीते चुनावों के आंकड़े उत्साहवर्धक नहीं हैं। 1995 से लगातार सत्ता पर काबिज भाजपा की सीटें 2002 के बाद से हर चुनाव में घटी हैं।

गुजरात की चुनावी जंग में भाजपा को सत्ता बरकरार रखने के लिए दोहरा मोर्चा साधना पड़ रहा है। एक तरफ कांग्रेस से ग्रामीण इलाकों में जमीनी लड़ाई लड़नी पड़ रही तो वहीं आम आदमी पार्टी की गारंटियों के प्रचार अभियान से जूझना पड़ रहा है। हालांकि, राज्य में मजबूत विपक्ष न होने का लाभ भाजपा को मिल सकता है।

पार्टी की रणनीति के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह हैं। वर्ष 2017 में वह बहुमत के आंकड़े 92 से महज सात सीटें ज्यादा ही जीत पाई थी। इस बीच कांग्रेस से कई नेता पार्टी में शामिल भी हुए हैं। पिछली बार के पाटीदार आंदोलन और जीएसटी जैसा बड़ा मुद्दा भी इस बार नहीं है। ऐसे में किसी तरह की अंदरूनी नाराजगी घातक हो सकती है।

यही वजह है कि भाजपा की रणनीति में एक-एक मतदाता शामिल है और वह उन तक पहुंच रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए अहमद पटेल की अनुपस्थिति भी भाजपा के लिए राहत की बात है। भाजपा इस बार सौराष्ट्र और पंचमहल के आदिवासी क्षेत्रों पर ज्यादा काम कर रही है। दोनों क्षेत्रों में पार्टी को पिछली बार नुकसान हुआ था। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों से निपटने के लिए भाजपा इस बार शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग-अलग ढंग से काम कर रही है। सशक्त पाटीदार समुदाय को साधा है तो कांग्रेस में सेंध लगाकर उसके सामाजिक समीकरण को कमजोर किया है।

गुजरात भाजपा के लिए अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अहम है। क्योंकि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य है। यही वजह है कि लगभग छह महीने पहले जब उत्तर प्रदेश समेत पांच विधानसभाओं का चुनावों के परिणाम भी नहीं आए थे, प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात का मोर्चा संभाल लिया था।

तब से अब तक मोदी दर्जनों बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह खुद सारी चुनावी रणनीति के केंद्र में हैं। एक-एक सीट के लिए उम्मीदवार चयन का काम वह खुद देख रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान जनता की नाराजगी को खत्म करने के लिए पूरी सरकार को ही बदल दिया था। इसके बाद से लगातार सत्ता विरोधी माहौल की काट के हिसाब से कदम उठाए जा रहे हैं।

भाजपा का ध्यान उन नये मतदाताओं की तरफ भी है जो भाजपा के शासन काल में जन्में हैं। इन्होंने केवल भाजपा का ही शासन देखा है। ऐसे में उनमें बदलाव की इच्छा को विकास की नई उड़ान के साथ भाजपा के साथ जोड़े रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। मोरबी की घटना के बाद राज्य में भाजपा के खिलाफ नाराजगी है और प्रदेश नेतृत्व को लगातार अपने दबाव में रखने की मोदी और शाह की चाल भी इस वजह से पार्टी पर भारी पड़ती जा रही है।

मोरबी के घायलों को देखने नरेंद्र मोदी का अस्पताल जाना और वहां की सच्चाई का सोशल मीडिया पर छा जाना भी सत्तारूढ़ दल की परेशानी बढ़ाने वाली साबित हुई है। मोदी और शाह की जोड़ी अच्छी तरह यह समझ रही है कि गुजरात का चुनाव परिणाम अनुकूल नहीं होने की स्थिति में अभी देश में जो राजनीतिक समीकरण पार्टी के अंदर और बाहर हैं, वे भी रातों रात बदल जाएंगे।

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